मैं युवा*
मेहनत से मैं डरता नहीं
तेढ़ी चालें मैं चलता नहीं
वक्त के आगे टेक दूं घुटनें
मैं हरगिज़ ऐसा करता नहीं
निकला हूँ तलाश में
ज़िंदगी की आस में
नहीं रूकूंगा नहीं थकूंगा
सपने रखता हूँ पास में
धुंधले हैं पर मेरे हैं
सपनो में कई घेरे हैं
तोड़ दूंगा सब घेरा-वेरा
रातों के बाद सवेरे ही हैं
जग ने दीया वो काफ़ी हैं
जो नहीं दीया वो माफ़ी हैं
अब मेरी बारी देने की
नहीं दीया तो नाइंसाफी है
मैं यूवा हूं, मैं ज़िंदा हूं
जुनून से भरा परिंदा हूँ
परवाज़ मेरी ऊंची होगी
मैं ‘इंसान’ हूँ, दहिंदा (देने वाला) हूँ
-अनीस खान ‘इंसान’